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Bhandari Vaastu Consultancy वास्तु विषय की सार्थकता | Bhandari Vaastu Consultancy | Indian Vaastu | Vaastu Shastra | Hyderabad | India

वास्तु विषय प्रवेश

आज का आम इंसान अति व्यस्त है। दूषित वातावरण एवं समस्याओं ने उसका जीवन अंधकारमय, उदास एवं पीड़ित बना दिया है। मानव भले ही महान मेधावी क्यों न हो, प्रकृति पर विजय पाने की आकांक्षा को लेकर कितना ही प्रयत्न करे, उसे प्रकृति की शक्तियों के समक्ष नतमस्तक होना ही पड़ेगा। प्रकृति पर विजय पाने की कामना को छोड़कर, उसके रहस्यों को आत्मसात करके, उसके नियमों का अनुसरण करे, तो प्रकृति की ऊर्जा शक्तियां स्वयं ही मानव समुदाय के लिये वरदान सिद्ध होगी। इस विषय में वास्तु विषय अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है। पंच-तत्वों पर आधारित वास्तु पर मानव सिद्धि प्राप्त करता है, तो वह उसे सुख-शांति और समृद्धि प्रदान कर सकता है। यही वास्तु का रहस्य है।

वास्तु विषय का महत्व बढ़ने के साथ-साथ केवल पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर इस विषय में इतने अपरिपक्व एवं अज्ञानी लोग प्रवेश कर चुके हैं कि आम व्यक्ति के लिये सही-गलत का फैसला कर पाना मुश्किल हो जाता है। बाजार में वास्तु-शास्त्र से संबंधित मिलने वाली लगभग सभी पुस्तकों में एक ही तरह की बातें लिखी रहती हैं। इसका अर्थ यह है कि यह पुस्तकें लेखक की मौलिक रचना नहीं है और ना ही स्वयं शोध या अनुसंधान करके लिखी गयी है, बल्कि शास्त्रों में लिखी गयी बातों को अपनी भाषा में पिरो दी जाती है या फिर अन्य पुस्तकों की नकल, जिन्हें पढ़कर आम इंसान वास्तु विषय के प्रति भ्रमित ही रहता है।

जब कई मकानों का अवलोकन किया जाता है, तब हम यह देखते हैं कि प्रत्येक मकान का आकार एवं दिशाएं अलग-अलग होती हैं। जबकि पुस्तकों में लगभग एक ही तरह के सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है। आप स्वयं चिंतन कर सकते हैं कि जब अलग-अलग मकान की दिशाएं भिन्न-भिन्न रहती है, तब अलग-अलग मकान में वास्तु के सिद्धांत भी पृथक लागू होंगे। इस स्थिति में पुस्तकों में दिये गये सिद्धांत कौन से मकान पर लागू होंगे? या फिर पुस्तकों में दिये गये वास्तु सिद्धांत कौन से मकान को आधार बनाकर लिखे गये हैं? कहना कठिन है। पुस्तकें हमारे लिये ज्ञानवर्धक हो सकती है, लेकिन पुस्तकीय ज्ञान और व्यावहारिकता में बहुत अंतर होता है। वास्तु शास्त्र हजारों वर्ष पहले उस समय की जरूरत एवं आवश्यकता के अनुसार रचा गया है। समय परिवर्तन के साथ आवश्यकता व जरूरत के अनुसार उचित फेरबदल एवं संशोधन भी जरूरी होता है।

वास्तु-शास्त्र और वास्त-विज्ञान में मुख्य अंतर यह है कि शास्त्र हम पर शासन करता है, लेकिन विज्ञान हमें आवास संबंधी ज्ञान के बारे में नई जानकारियों से परिचित कराता है। जब किसी कार्य-पद्धति के विशिष्ट ज्ञान के कारण का संबंध स्थापित हो जाये और बार-बार अनुसंधान करने पर ठोस परिणाम आने लगते हैं। तब यह कार्य पद्धति स्वत ही वैज्ञानिक बन जाती है।

कई ज्योतिष जो वास्तु के बढ़ते महत्व के कारण सिर्फ पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर वास्तु विषय में प्रवेश कर चुके हैं। यह महाशय समस्याग्रस्त इंसान को वास्तु दोष निवारण के नाम पर पूजा-पाठ, यंत्र-मंत्र, टोटके इत्यादि में उलझा देते हैं। जबकि समस्याओं का समाधान एवं सुख-समृद्धि प्राप्त करने के लिये वास्तु विषय को अन्य किसी भी विषय के माध्यम की जरूरत ही नहीं पड़ती।

भारत में पुरातन काल से आध्यात्मिक प्रभाव ज्यादा रहने से आम इंसान पूजा-पाठ में ज्यादा रुचि लेता है। जबकि पूजा-पाठ करना आपकी धार्मिक भावना एवं आस्था का प्रतीक है। आपके इष्टदेव के प्रति श्रद्धा एवं उनकी प्रतिमा, आपके ध्यान लगाने का माध्यम हो सकता है। ग्रह-दोष निवारण एवं कार्य-सिद्धि के लिये पंडित से पूजा-पाठ करवाने से अपना कोई हल नहीं निकल पाता। क्योंकि जब हम बीमार होंगे और दवाई कोई दूसरा खायेगा, तो हमें उसका असर कैसे प्राप्त हो सकता है? यह तर्कहीन सिद्धांत हमें आज तक समझ में नहीं आया।

स्वयं मंत्र जाप करना आप के स्वयं के लिये उत्तम कारगर साबित हो सकता है, क्योंकि अलग-अलग मंत्रों के अलग-अलग उच्चारण, मानव शरीर में स्थित अलग-अलग नाड़ियों पर अपना प्रभाव डालते हैं। स्वयं मंत्र जाप करने से शरीर में उष्मा बढ़ती है, जिससे मानव शरीर में स्थित गुप्त शक्तियों को खुलने का मौका मिलता है।

कई महाशय यह सलाह दे बैठते हैं कि मकान का मुख्य दरवाजा गृह-मालिक की राशि व नक्षत्र के अनुसार लगाया जाये। ऐसे अनुभवहीन लोग वास्तु विषय के प्रति अपनी अज्ञानता से आम जनता को गुमराह कर रहे हैं, क्योंकि राशि व नक्षत्र के अनुसार लगाया गया मुख्य द्वार अगर वास्तु की दृष्टि से गलत होगा, तो इससे उत्पन्न होने वाले दुष्परिणामों के बारे में नहीं सोचते हैं।

उदाहरण के तौर पर - गृह-मालिक को उसके राशि व नक्षत्र के अनुसार मुख्य दरवाजा लगाने के लिये बताया जाता है, लेकिन यह सिद्धांत निश्चय ही तर्कहीन है। क्योंकि गृह-मालिक की मृत्यु के उपरान्त, उनके पुत्रों के लिये वह मुख्य द्वार निवास योग्य रहेगा या नहीं? तब उनके पुत्रों के लिये उस मुख्य द्वार को हटा कर, उनकी राशि व नक्षत्र के अनुसार दिशा में द्वार लगाना पड़ेगा? क्योंकि पुत्रों की राशि व नक्षत्र भिन्न होगी। राशि व नक्षत्र के अनुसार ऐसी जगह पर मुख्य द्वार लगा हो, जो वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है तो निश्चय ही उस मकान में रहने वालों के लिये कई समस्याएँ खड़ी हो जायेंगी।

वास्तु दोष के कारण पैदा होने वाली परेशानियों की शिकायत जब की जाती है, तब संबंधित व्यक्ति आसान-सा उत्तर देकर टकरा देते हैं और स्वयं को बचा लेते हैं कि अभी आपकी ग्रह दशा खराब है, या भाग्य साथ नहीं दे रहा है। हम यह पूछते हैं कि जब भाग्य ही सब कुछ है तो वास्तु विषय को क्यों अपनाते हैं। इस तरह के अंधविश्वास और ग्रह-दशाओं की विपरीत परिस्थिति से डराकर, इसके लिये पूजा-पाठ-यंत्र इत्यादि के लिये सलाह देकर, यह सब करने के लिये प्रेरित करते हैं। इससे समस्याओं का समाधान तो नहीं मिल सकता, लेकिन समस्याग्रस्त इनसान की आर्थिक एवं मानसिक परेशानियाँ जरूर बढ़ जाती है।

पुस्तकों में भूमि परीक्षण करने के लिये लिखा रहता है कि पहले भूमि में गड्डा खोदो और उसमें पानी या मिट्टी भरो। पानी या मिट्टी के कम और ज्यादा रहने के आधार पर भूमि का परीक्षण करवाते हैं। लेकिन इससे सिर्फ इतना ही साबित किया जा सकता है कि भूमि सख्त (ठोस) है या नरम । पुराने जमाने में मकान सिर्फ दीवारों की नींव पर बनते थे। अत भूमि का नरम या सख्त आधार देखना ही एकमात्र कारण हो सकता है। आजकल भूमि में गहरे पिल्लर खड़े करके मकान का निर्माण किया जाता है। अत पुस्तकों में लिखी गयी बातों के आधार पर भूमि परीक्षण के नाम पर लोगों को बहकाना बेवकूफी ही है।